वर्ल्ड कप की ट्रॉफी का सपना 12 साल बाद एक बार फिर ऑस्ट्रेलिया ने तोड़ दिया। रोहित शर्मा की कप्तानी में टीम खिताब के बिलकुल करीब पहुंची, लेकिन ट्रॉफी को उठा नहीं सकी। खिताबी मुकाबले में रोहित की आर्मी को ऑस्ट्रेलिया ने 6 विकेट से हार का स्वाद चखाया। फ़िनला मैच में टीम इंडिया की पुरानी कमजोरी एक बार फिर उजागर हुई। साल 2011 के विश्व कप में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ जो काम युवराज सिंह ने टीम इंडिया के लिए किया था, वो श्रेयस अय्यर और सूर्यकुमार यादव जैसे बल्लेबाज नहीं कर सके।
साल 2011 में ऑस्ट्रेलिया भारतीय टीम की राह में सीना तानकर खड़ी हुई थी। भारत और ऑस्ट्रेलिया की भिड़ंत क्वार्टर फाइनल में हुई थी। सचिन-सहवाग, गंभीर और विराट कोहली के पवेलियन लौटने के बाद उस मुकाबले में भी टीम इंडिया की हालत खस्ता थी, लेकिन उस मैच में युवराज सिंह टीम इंडिया के लिए मसीहा बनकर सामने आए थे। अहमदाबाद में 24 मार्च की उस रात को युवराज के बल्ले से निकली 57 रन की अहम पारी ने टीम इंडिया को सेमीफाइनल का टिकट दिलाया था। वो पारी इसलिए खास थी, क्योंकि कंगारू टीम पूरी तरह से हावी थी।
साल 2011 की तरह ही भारतीय टीम का वर्ल्ड कप 2023 के फाइनल मैच में भी यही हाल था। रोहित, शुभमन गिल पवेलियन लौट चुके थे और टीम को एक बड़ी साझेदारी की जरूरत थी। नंबर चार पर उतरे श्रेयस अय्यर से काफी उम्मीदें भी थीं, लेकिन अय्यर नॉकआउट मैच का दबाव नहीं झेल सके। अय्यर सिर्फ चार रन बनाकर आउट हुए।
फाइनल से पहले तीन मैचों में श्रेयस अय्यर के बल्ले ने खूब हल्ला मचाया था और कहा जा रहा था कि टीम इंडिया को नंबर चार की पोजिशन के लिए बेस्ट बल्लेबाज मिल गया है। अय्यर की तुलना युवराज से भी की जा रही थी। हालांकि, खिताबी मुकाबले में अय्यर की पोल एकबार फिर खुल गई। सिर्फ फाइनल ही नहीं, बल्कि जब-जब टीम शुरुआती विकेट गंवाकर मुश्किल में फंसी तब-तब अय्यर दबाव नहीं झेल पाए और खराब शॉट खेलकर पवेलियन लौटे।
युवराज वो बल्लेबाज थे, जो शुरुआती विकेट गिरने के बाद टीम की पारी को संवारने का हुनर जानते थे और इसी वजह से उनका वर्ल्ड कप 2011 में योगदान सबसे बड़ा माना भी जाता है। बल्ले के साथ-साथ युवी गेंद से भी कमाल दिखाते थे और 2011 विश्व कप में उनके नाम 9 मैचों में 15 विकेट दर्ज थे।
श्रेयस अय्यर से पहले सूर्यकुमार यादव को भी नंबर चार की पोजिशन पर आजमाया गया था, लेकिन उनके अंदर भी वनडे फॉर्मेट में वो बात नजर नहीं आई। आईसीसी के हर नॉकआउट मैच में भारत के कमजोर मिडिल ऑर्डर की पोल खुलकर सामने आ जाती है। शुरुआती विकेट गिरने के बाद भारतीय टीम पूरी तरह से दबाव में आ जाती है और बैटिंग ऑर्डर ताश के पत्तों की तरह बिखर जाता है।
भारतीय टीम को अगर भविष्य में आईसीसी टूर्नामेंट में दमदार प्रदर्शन करते हुए खिताब पर कब्जा जमाना है, तो टीम को युवराज सिंह जैसी काबिलियत रखने वाले खिलाड़ी को खोजना होगा। इसके साथ ही मध्यक्रम को भी दुरुस्त करना होगा, ताकि लंबे समय से चला रहा आईसीसी ट्रॉफी का इंतजार खत्म हो सके।