बिहार विजय की कामना के साथ भाजपा ने प्रदेश प्रभारी विनोद तावड़े के साथ हरीश द्विवेदी और सुनील ओझा को सह प्रभारी की जिम्मेदारी सौंपी थी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के करीबी कहे जाने वाले ओझा अपने अनुभवों से चुनावी जीत का ताना-बाना भी बुनने लगे थे।
इस बीच बुधवार को गुरुग्राम में उनका निधन हो गया। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी, विधानसभा व विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष क्रमश: विजय सिन्हा व हरि सहनी आदि ने उनके निधन पर गहरी संवेदना व्यक्त की है। इन नेताओं का कहना है कि उनके निधन से हुई क्षति की निकट भविष्य में भरपाई संभव नहीं।
गुजरात में भावनगर जिले के मूल निवासी ओझा को लगभग एक वर्ष पूर्व बिहार में नया दायित्व मिला था। इससे पहले वे उत्तर प्रदेश में पार्टी के सह प्रभारी थे और उनका केंद्र वाराणसी था, जो प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र है। वाराणसी में वे प्रधानमंत्री के कार्यालय को भी संभाल चुके थे।
उनपर शाह की विशेष कृपा थी, जो बिहार से सत्ताच्युत हो चुकी भाजपा को अपने बूते सत्ता में पहुंचाने के लिए विशेष परिश्रम कर रहे। राज्यों के सभी प्रमंडलों में सभाएं कर चुके शाह संभव है कि अब हर लोकसभा क्षेत्र में जनसभाएं करें। इसके मूल रणनीतिकार ओझा ही बताए जा रहे।
सांगठनिक कौशल, बेहतरीन रणनीतिकार और चुनावी चतुराई में पार्टी उन्हें बेजोड़ मानती रही है। वे भावनगर दक्षिण से भाजपा के विधायक भी रहे थे। गड़ौली धाम आश्रम को लेकर एक समय उन्हें कटु आलोचनाएं भी झेलनी पड़ीं। उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में गंगा नदी के किनारे यह आश्रम है। तब चर्चा चली थी कि आश्रम का निर्माण ओझा की देखरेख में हो रहा है, जो उनकी धन-लिप्सा का प्रतिफल है।
मतभेदों के कारण ओझा भाजपा से अलग भी हुए थे। हालांकि, 2011 में वे पार्टी में लौट आए। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में वाराणसी में नरेन्द्र मोदी की जीत के मुख्य सूत्रधार रहे। गुजरात के विधानसभा चुनावों में भी वे मोदी के लिए जीत का ताना-बाना बुनते रहे हैं।
One thought on “बिहार भाजपा के सह प्रभारी सुनील ओझा का निधन, अमित शाह का सपना साकार किए बिना कहा इस दुनिया को अलविदा”