भारत में सपन्न हुए चुनावों के नतीजों ने केंद्र में सत्ताधारी पार्टी बीजेपी को मजबूत जनादेश, बढ़ती अर्थव्यवस्था और सुधरते महंगाई के अनुमानों ने शेयर बाजार का हौसला बढ़ा दिया है। सोमवार को, सेंसेक्स ने 70 हजार का रिकॉर्ड आंकड़ा पार कर इतिहास रचा। वहीं, एनएसई निफ्टी ने कल मंगलवार को 21,000 को पार कर दिया। इस समय सेंसेक्स के 70,000 पहुंचने के चर्चे विदेशो में भी खूब हो रहे हैं। सेंसेक्स ने 60 हजार से 70 हजार तक पहुंचने में 549 सत्र लिये हैं। 24 सितंबर, 2021 को सेंसेक्स ने 60,000 का स्तर छुआ था। यह 11 दिसंबर, 2023 को 70,000 के लेवल तक पहुंचा। इस दौरान सेंसेक्स में 16.5 फीसदी फायदा बढ़ा है। वहीं, इस अवधि के दौरान डाउ जोन्स में सिर्फ 4.2 फीसदी का ही इजाफा हुआ। उधर चीनी सूचकांक संघाई 17.2 फीसदी गिर गया।
सोने ने सबको पीछे छोड़ा
सेंसेक्स जब 70 हजार के पार पहुंचा, उस अवधि में दूसरे एसेट्स ने कितना फायदा दिया है। अगर आप 24 सितंबर 2021 को एक लाख रुपये का ब्रेंट क्रूड लेते तो 11 दिसंबर को यह रकम गिरकर 95,582 रुपये होते। वहीं, बिटकॉइन में आपने यह रकम लगाई होती, तो सोमवार तक वह रकम 98,742 रुपये होती। अगर आपने 60,000 के स्तर पर एक लाख रुपये सेंसेक्स में लगाए होते, तो सोमवार को यह रकम 1,16,455 रुपये होती। चांदी में अगर आपके 1 लाख रुपये इस अवधि में लगाए होते, तो ये 1,21,796 रुपये हो जाते। वहीं, सोने ने इस अवधि में धांसु रिटर्न दिया है। सोने में लगाए 1 लाख रुपये इस अवधि में 1,34,795 रुपये हो गए।
क्यों आई बाजार में तेजी?
पिछले दो वर्षों में भारतीय बाजार ने तेजी आने के कई कारण है। दुनिया के बाजार कई वर्षों की उच्च महंगाई के बीच जूझते दिखाई दिए। इसके अलावा, केंद्रीय बैंकों ने ब्याज दरें बढ़ाईं, यूरोप और पश्चिम एशिया में युद्ध का खतरा बढ़ा, अमेरिका में एक बैंक डूबा और कच्चे तेल की कीमतों में भारी उतार-चढ़ाव दिखाई दिया। भारत में रिकॉर्ड स्तर के पास विदेशी मुद्रा भंडार और कम ब्याज दरों ने निवेशकों का उत्साह बढ़ाया।
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घरेलू म्यूचुअल फंड्स की खरीदारी अहम
सोमवार को भी विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (FPI) 1,261 करोड़ रुपये के शुद्ध खरीदार थे। इस महीने में अब तक, निवेशकों के इस प्रभावशाली समूह ने स्टॉक्स के माध्यम से 32,000 करोड़ रुपये से अधिक का शुद्ध निवेश किया है। हालांकि, एफपीआई आमतौर पर भारतीय शेयर बाजार में अपने व्यापार की भारी वॉल्यूम से सुर्खियों में रहते हैं। लेकिन आंकड़े बताते हैं कि जब विदेशी फंड आक्रामक रूप से बेचते हैं, तो घरेलू म्यूचुअल फंड ही असली संतुलन बनकर उभरे हैं।